Sanskrit

About

संस्कृत विभाग का इतिहास इसी महाविद्यालय के इतिहास से प्रारम्भ होता है। विभाग को अतीत में अपने संकाय के रूप में इस विषय के कुछ दिग्गजों के होने का गौरव प्राप्त है। प्रोफेसर कृष्ण लाल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित वैदिक विद्वान थे, जो बाद में दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के प्रमुख बने। विभाग में स्नातक स्तर पर एक सौ से अधिक विद्यार्थी नामांकित हैं। विभाग में बहुत प्रतिभाशाली और समर्पित संकाय सदस्य हैं।  उनकी उच्च स्तर की शैक्षणिक साख उनके सराहनीय शैक्षणिक कार्यों का परिणाम है।  वे अपने छात्रों को हिंदी, अंग्रेजी के साथ.साथ संस्कृत माध्यम में भी पढ़ा सकते हैं।  वे डिजिटल और सूचना प्रौद्योगिकी जैसी आधुनिक प्रौद्योगिकी से सुसज्जित हैं ताकि छात्र आसानी से समझ सकें।  विभाग अंतर अनुशासनात्मक पाठ्यक्रम भी प्रदान करता है। डीयू में राष्ट्रीय शिक्षा नीति पेश की गई है।  एनईपी का एक मुख्य जोर संस्कृत के अध्ययन के लिए भारतीय ज्ञान प्रणाली और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को विकसित करना है।  शिक्षक पाठ्य लेखन की आधुनिक दृष्टिकोण से व्याख्या करने में रुचि रखते हैं।

 संस्कृत विभाग में हमेशा से विद्वान और समर्पित प्राध्यापक रहे हैं जिन्होंने कॉलेज की अकादमिक  एवं प्रशासनिक स्तर एवं गतिविधियों को हमेशा ऊंचा उठाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इस समय संस्कृत विभाग में दो वरिष्ठ प्राध्यापक प्रोफेसर के पद को अलंकृत करते हुए विभाग का कुशल मार्गदर्शन कर रहे हैं। शेष सात प्राध्यापकों की नियुक्ति सहायक प्रोफेसर के रूप में निवर्तमान शैक्षणिक सत्र में कॉलेज की यशस्विनी प्राचार्या प्रो. कृष्णा शर्मा के कर कमलों से हुआ है।

संस्कृत विभाग सदैव भारतीय ज्ञान परम्परा के प्रचार प्रसार में संलग्न रहा है। इसके साथ ही संस्कृत-समवाय के माध्यम से प्रत्येक शैक्षणिक सत्र में लब्ध प्रतिष्ठित विद्वानों के द्वारा वेदव्याख्यान.मंजरी के अंतर्गत व्याख्यान आयोजित करता है, कॉलेज स्तर पर प्रतियोगिता एवं संस्कृत संभाषण शिविर भी करवाता है। यही कारण है कि दिल्ली और खासतौर पर एनसीआर के संस्कृत विषय में रुचि रखने वाले छात्रों के लिए संस्कृत विभाग बेहतर विकल्पों में से एक है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के आलोक में बने संस्कृत विषय के पाठ्यक्रमों का उद्देश्य छात्रों को प्राचीन ज्ञान की विभिन्न शाखाओं से परिचित कराने के साथ ही चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व का समग्र विकास करना भी है। जिससे छात्रों में अनुसंधानपरक दृष्टि एवं कौशल विकास भी स्वतः हो जाएगा। आज सम्पूर्ण विश्व के युवाओं में नैतिक एवं मानवीय मूल्यों में ह्रास हो रहा है। अपने देश में भी छात्रों में नैतिक और अध्यात्मिक गिरावट हो रही है। हम सभी जानते हैं कि पीजीडीएवी कॉलेज महर्षि दयानंद सरस्वती के आदर्शों एवं शिक्षाओं पर चलने वाला संस्थान है, जिसका संस्कृत विभाग पिछले 65 वर्षों से छात्रों को  बौद्धिक रूप से सक्षम, नैतिक रूप से जागृत और समाज एवं राष्ट्र निर्माण के प्रति समर्पित नागरिक बना रहा है। यह संयोग है कि इस समय देश में अमृतकाल चल रहा है वहीं पीजीडीएवी कॉलेज महर्षि दयानंद सरस्वती के 200 वीं जयन्ती का महोत्सव मना रहा है। इस पवित्र वर्ष में संस्कृत विभाग का यह संकल्प है कि भारतीय ज्ञान परम्परा के बारे में संस्कृत विषय से इतर विषय एवं विभागों के छात्रों में रुचि पैदा हो तथा कम से कम दो सेमेस्टर में पीजीडीएवी में पढ़ने वाले सभी छात्र संस्कृत का एक पेपर पढ़ें। हमारे पास छात्रों के लाभ के लिए अत्यंत उपयोगी संस्कृत पुस्तकों से युक्त बहुत समृद्ध पुस्तकालय है। आशा है कि विभाग में शामिल होने वाले छात्र कॉलेज में अपने प्रवास के दौरान अपनी पढ़ाई के लिए सबसे अनुकूल माहौल में पाएंगे।

The history of the Department of Sanskrit begins with the history of this college itself. The department enjoys the pride of having some of the stalwarts in the subject as its faculties in the past. Prof. Krishna Lal is an internationally acclaimed Vedic scholar who later became the Head of the Department of Sanskrit, University of Delhi. More than one hundred students are enrolled at the graduate level in the Department.

The Department has very talented and dedicated faculty members. Their high degree of academic credential is a result of their commendable academic work. They can teach their students in Hindi, English as well as Sanskrit medium also. They are well equipped with Modern Technology like digital and information technology so that the students can understand easily. The Department also offer Interdisciplinary courses. The National Education Policy has been Introduced in DU. One of the Main thrusts of NEP is to inculcate the Indian Knowledge system and scientific approach to the study of Sanskrit. The teachers are interested in interpreting the text writing with a modern approach.

The Departmental society 'Sanskrit Samvay' (संस्कृत-समवाय) has invited very eminent scholars for academic discussion. We also organised a Quiz competition, Sanskrit sambhashan and a cultural programme. We have a very rich library with the most useful Sanskrit books to the benefit of the students.

Hopefully, the students joining the Department will find themselves in the most congenial atmosphere for their studies throughout their stay in College.